कई इलेक्ट्रिक वाहन उपयोगकर्ता अपनी लिथियम-आयन बैटरियों को आधे महीने से ज़्यादा इस्तेमाल न करने के बाद चार्ज या डिस्चार्ज नहीं कर पाते, जिससे वे गलती से यह सोचने लगते हैं कि बैटरियों को बदलने की ज़रूरत है। दरअसल, लिथियम-आयन बैटरियों में डिस्चार्ज से जुड़ी ऐसी समस्याएँ आम हैं, और इनका समाधान बैटरी की डिस्चार्ज स्थिति पर निर्भर करता है—औरबैटरी प्रबंधन प्रणाली (बीएमएस) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
सबसे पहले, बैटरी के डिस्चार्ज स्तर की पहचान करें जब वह चार्ज न हो पा रही हो। पहला प्रकार हल्का डिस्चार्ज है: यह BMS की ओवर-डिस्चार्ज सुरक्षा को सक्रिय करता है। यहाँ BMS सामान्य रूप से काम करता है, डिस्चार्ज MOSFET को बंद करके बिजली उत्पादन रोक देता है। परिणामस्वरूप, बैटरी डिस्चार्ज नहीं हो पाती, और बाहरी उपकरण इसके वोल्टेज का पता नहीं लगा पाते। चार्जर का प्रकार चार्जिंग की सफलता को प्रभावित करता है: वोल्टेज पहचान वाले चार्जर को चार्जिंग शुरू करने के लिए बाहरी वोल्टेज का पता लगाना पड़ता है, जबकि एक्टिवेशन फ़ंक्शन वाले चार्जर BMS ओवर-डिस्चार्ज सुरक्षा के तहत बैटरी को सीधे चार्ज कर सकते हैं।
इन डिस्चार्ज स्थितियों और BMS की भूमिका को समझने से उपयोगकर्ताओं को अनावश्यक बैटरी बदलने से बचने में मदद मिलती है। लंबे समय तक भंडारण के लिए, लिथियम-आयन बैटरियों को 50%-70% तक चार्ज करें और हर 1-2 हफ़्ते में टॉप-अप करें—इससे गंभीर डिस्चार्ज से बचाव होता है और बैटरी की लाइफ बढ़ती है।
पोस्ट करने का समय: 08-अक्टूबर-2025
